Monday, 6 March 2017

साथ


स्वांसो का अटके रहना

गले और फेेफडों के कहीं बीच में

जिए जाना

जीवन और मृत्यु की अनुपस्थिति में

समुन्द्र से मिलने से पहले

खरा हो जाना

नदी का

फूलों का

बिना खुशबू के खिलना

तुम्हारा

मेरे साथ होना

न होने जैसा

-----------राजेश शर्मा 

Tuesday, 4 June 2013

शान्ति

शब्दों को 
रहस्यमय मौन निगल गया 
भावनाओं ने 
समाधी ले ली 
संवेदनाएं 
शून्य मे समा गई 
---------------------Rajesh Sharma

Friday, 1 February 2013

कुछ भी नहीं बदला

 मै आज भी 
रो लेता हूँ 
बच्चों की तरह 
हँसता हूँ आज भी 
वैसे ही 
किसी को छेड़कर 
वैसे ही मुस्कुराता हूँ 
सबको खुश देखकर 
देता हूँ वैसे ही 
सलाह 
बिन माँगे 
करता हूँ चिंता 
वैसे ही 
उनकी 
जो साथ हैं 
और उनकी भी 
जो साथ नहीं हैं 
वैसे ही नाराज़ होता हूँ 
जब नहीं मिलता हक 
उनसे 
जो कहते हैं 
हक है तुम्हारा 
वैसे ही बाँट कर खाता हूँ 
कंगाली मे भी 
बिलकुल नहीं बदला हूँ मै 
और बिलकुल नहीं बदले 
तुम भी 
वैसे ही हो 
सोचता हूँ 
कितना अच्छा होता 
अगर बदल जाते तुम 
या मै बदल पाता
फिर सोचता हूँ 
की सोचना छोड़ दूँ
----------------Rajesh Sharma

Thursday, 31 January 2013

ग़ज़ल



दिल पर दुश्मन के पहरे रखे है 
आँखों मे सब बेवफा चहरे रखें हैं 

तू मुझमे होकर भी मुझमे नहीं है 
ख़याल दुनिया के बड़े गहरे रखे हैं 

अब तो तेरे फज़ल से ही विसाल मुमकिन है 
हमने तो आज़मा हुनर सारे रखें हैं 

इन्हें थोड़ी थोड़ी हवा देते रहना 
सुलगा इश्क के जो अंगारे रखे है 
--------------------राजेश शर्मा

Tuesday, 27 November 2012

ऐ सुनो


ऐ  सुनो 
रोना नहीं 
जानता हूँ 
तुम्हारी पीड़ा 
बादल बनकर घुमड़ आई है 
लेकिन इसे बरसने मत देना 
जब तक एकांत न मिले

ऐ सुनो 
थोडा सा मुस्कुरा दो 
जानता हूँ 
तुम्हारी मुस्कराहट बहुत पहले ही खो गई है 
असली न सही 
नकली भी चलेगी 
चलेगी नहीं बल्कि चलती है 
कृत्रिम  संसार मे  
कृत्रिम  मुस्कुराहटें ही मिलती है 
लेकिन जरुरी है

ऐ सुनो 
मै बकवास नहीं कर रहा हूँ 
बल्कि एक सच्चाई से 
पर्दाफाश कर रहा हूँ 
तुम नहीं हंसोगे 
तो लोग तुम पर हँसेंगे

ऐ सुनो 
तुम्हे ये हुनर सीखना होगा 
क्योंकि संसार एक रंगमंच है 
जो जितना अच्छा अभिनय करेगा 
उतनी ही तालियाँ  बटोरेगा  
--------------------Rajesh Sharma

Monday, 26 November 2012


 इस दुनिया से कुछ देर जुदा हो जाइये 
  मेरे   लफ़्ज़ों   में   जरा   खो  जाइये 

मै  निकला हूँ  तलाश- ए -जिंदगी  मे 
इस सफ़र मे आप भी शामिल हो जाइये 

अपने लेखन को आप तक पहुंचाते हुए बहुत पहले लिखी उपरोक्त पंक्तियां फिर जहन  मे  उतर आई लेखक या कवि  होना अपने आप मे  एक बड़ी बात है  ऐसा दावा फिलहाल मै नहीं कर सकता क्योंकि इस दिशा मे अभी बहुत कुछ सीखने की जरुरत महसूस करता हूँ   हाँ रोजमर्रा की जिंदगी जो प्रश्न मेरे सामने खड़े करती रही, उनके जवाब तलाशने की कोशिश मे जो कुछ लिखा उसे ब्लॉग के माध्यम से आपके सामने रखूँगा  वासु रितु जी का विशेष आभारी हूँ जिन्होंने मुझे ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया  आशा करता हूँ कि आपके मार्गदर्शन से लेखन मे और सुधार कर सकूँगा  अपने अब तक के कार्य और जीवन के लिए ईश्वर का और उन लोगो का जिन्हें ईश्वर  ने मेरे जीवन को सरल बनाने के लिए और कुछ सार्थक व रचनात्मक  करने के लिए समय- समय पर प्रेरित करने के लिए माध्यम बनाकर मेरे जीवन मे भेजा, मै  सदा आभारी रहूँगा कृपया अपनी मूल्यवान राय देते रहें 

आपका 
राजेश शर्मा