Tuesday, 4 June 2013

शान्ति

शब्दों को 
रहस्यमय मौन निगल गया 
भावनाओं ने 
समाधी ले ली 
संवेदनाएं 
शून्य मे समा गई 
---------------------Rajesh Sharma

Friday, 1 February 2013

कुछ भी नहीं बदला

 मै आज भी 
रो लेता हूँ 
बच्चों की तरह 
हँसता हूँ आज भी 
वैसे ही 
किसी को छेड़कर 
वैसे ही मुस्कुराता हूँ 
सबको खुश देखकर 
देता हूँ वैसे ही 
सलाह 
बिन माँगे 
करता हूँ चिंता 
वैसे ही 
उनकी 
जो साथ हैं 
और उनकी भी 
जो साथ नहीं हैं 
वैसे ही नाराज़ होता हूँ 
जब नहीं मिलता हक 
उनसे 
जो कहते हैं 
हक है तुम्हारा 
वैसे ही बाँट कर खाता हूँ 
कंगाली मे भी 
बिलकुल नहीं बदला हूँ मै 
और बिलकुल नहीं बदले 
तुम भी 
वैसे ही हो 
सोचता हूँ 
कितना अच्छा होता 
अगर बदल जाते तुम 
या मै बदल पाता
फिर सोचता हूँ 
की सोचना छोड़ दूँ
----------------Rajesh Sharma

Thursday, 31 January 2013

ग़ज़ल



दिल पर दुश्मन के पहरे रखे है 
आँखों मे सब बेवफा चहरे रखें हैं 

तू मुझमे होकर भी मुझमे नहीं है 
ख़याल दुनिया के बड़े गहरे रखे हैं 

अब तो तेरे फज़ल से ही विसाल मुमकिन है 
हमने तो आज़मा हुनर सारे रखें हैं 

इन्हें थोड़ी थोड़ी हवा देते रहना 
सुलगा इश्क के जो अंगारे रखे है 
--------------------राजेश शर्मा