मै आज भी
रो लेता हूँ
बच्चों की तरह
हँसता हूँ आज भी
वैसे ही
किसी को छेड़कर
वैसे ही मुस्कुराता हूँ
सबको खुश देखकर
देता हूँ वैसे ही
सलाह
बिन माँगे
करता हूँ चिंता
वैसे ही
उनकी
जो साथ हैं
और उनकी भी
जो साथ नहीं हैं
वैसे ही नाराज़ होता हूँ
जब नहीं मिलता हक
उनसे
जो कहते हैं
हक है तुम्हारा
वैसे ही बाँट कर खाता हूँ
कंगाली मे भी
बिलकुल नहीं बदला हूँ मै
और बिलकुल नहीं बदले
तुम भी
वैसे ही हो
सोचता हूँ
कितना अच्छा होता
अगर बदल जाते तुम
या मै बदल पाता
फिर सोचता हूँ
की सोचना छोड़ दूँ
----------------Rajesh Sharma
----------------Rajesh Sharma
बहुत सुन्दर रचना | मैंने तो कब का सोचना छोड़ दिया हुज़ूर | ज़िन्दगी का कुछ नहीं पता के कब क्या खेल दिखा दे | इसलिए अब ज़िन्दगी जैसे तमाशा दिखाती है वैसे ही देखता हूँ | खुद ज़िन्दगी के लिए सोचकर कोई फैसला नहीं करता | भावुक प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई और आभार |
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
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