Friday, 1 February 2013

कुछ भी नहीं बदला

 मै आज भी 
रो लेता हूँ 
बच्चों की तरह 
हँसता हूँ आज भी 
वैसे ही 
किसी को छेड़कर 
वैसे ही मुस्कुराता हूँ 
सबको खुश देखकर 
देता हूँ वैसे ही 
सलाह 
बिन माँगे 
करता हूँ चिंता 
वैसे ही 
उनकी 
जो साथ हैं 
और उनकी भी 
जो साथ नहीं हैं 
वैसे ही नाराज़ होता हूँ 
जब नहीं मिलता हक 
उनसे 
जो कहते हैं 
हक है तुम्हारा 
वैसे ही बाँट कर खाता हूँ 
कंगाली मे भी 
बिलकुल नहीं बदला हूँ मै 
और बिलकुल नहीं बदले 
तुम भी 
वैसे ही हो 
सोचता हूँ 
कितना अच्छा होता 
अगर बदल जाते तुम 
या मै बदल पाता
फिर सोचता हूँ 
की सोचना छोड़ दूँ
----------------Rajesh Sharma

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर रचना | मैंने तो कब का सोचना छोड़ दिया हुज़ूर | ज़िन्दगी का कुछ नहीं पता के कब क्या खेल दिखा दे | इसलिए अब ज़िन्दगी जैसे तमाशा दिखाती है वैसे ही देखता हूँ | खुद ज़िन्दगी के लिए सोचकर कोई फैसला नहीं करता | भावुक प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई और आभार |

    Tamasha-E-Zindagi
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